Farma IT पर मंडराता संकट

जी हाँ, दोस्तों! अगर आपने भी आज सुबह शेयर बाजार का हाल देखा है, तो आपकी भी एक ही प्रतिक्रिया रही होगी – “अरे भई! ये फिर से क्या हो गया?”

26 सितंबर का दिन भारतीय शेयर बाजार के लिए एक और निराशाजनक सत्र लेकर आया। यह लगातार छठा दिन था जब बाजार में मंदी का रुख देखने को मिला। सुबह 9:45 बजे तक, सेंसेक्स 391.91 अंक यानी 0.48% टूटकर 80,767.77 के स्तर पर और निफ्टी 110.75 अंक यानी 0.44% की गिरावट के साथ 24,780.10 पर पहुंच चुका था। बाजार का मिजाज कितना नकारात्मक था, इसका अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि लगभग 2,288 शेयरों में गिरावट दर्ज की गई, जबकि सिर्फ 833 शेयर ही हरे निशान में थे।

लेकिन सवाल यह उठता है कि आखिर यह लगातार बिकवाली का दबाव क्यों है? चलिए, बात करते हैं उन मुख्य कारणों की जिन्होंने आज बाजार के मूड को खराब किया हुआ है।

1. अमेरिका के नए आयात शुल्क (Tariffs) और फार्मा सेक्टर पर मंडराता खतरा

शायद सबसे बड़ा झटका भारतीय फार्मास्यूटिकल कंपनियों के शेयरों को लगा। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने ब्रांडेड और पेटेंटेड दवाओं पर 1 अक्टूबर से 100% का अतिरिक्त आयात शुल्क (टैरिफ) लगाने की घोषणा की है। यह कदम भारतीय दवा कंपनियों के लिए एक बड़ी चिंता का विषय बन गया है, क्योंकि अमेरिका भारत की दवा निर्यात का सबसे बड़ा बाजार है। हमारे देश की कुल फार्मा एक्सपोर्ट का लगभग 35% हिस्सा अकेले अमेरिका को जाता है।

इस खबर का सीधा असर निफ्टी फार्मा इंडेक्स पर देखने को मिला, जो 2.3% टूटकर 21,445.50 के स्तर पर पहुंच गया – जो पिछले एक महीने का सबसे निचला स्तर है। इंडेक्स की सभी 20 कंपनियों के शेयर लाल निशान में थे। सन फार्मास्यूटिकल, डॉ. रेड्डीज लैबोरेटरीज और सिप्ला जैसे दिग्गजों के शेयरों में 2-3% की गिरावट आई, जबकि नैटको फार्मा, लॉरस लैब्स और बायोकॉन जैसी कंपनियों के शेयर 3-5% तक लुढ़के।

हालाँकि, विशेषज्ञों का मानना है कि तात्कालिक असर सीमित हो सकता है। ICICI सिक्योरिटीज के रिसर्च एनालिस्ट पंकज पांडे के अनुसार, भारत मुख्य रूप से जेनरिक दवाओं (सस्ती और जेनरिक दवाएं) का निर्यात करता है, जिन पर यह टैरिफ लागू नहीं होता। लेकिन उन्होंने एक डर भी जताया है कि भविष्य में ‘कॉम्प्लेक्स जेनरिक्स’ और ‘बायोसिमिलर्स’ जैसी उन्नत दवाएं भी इस टैरिफ की जद में आ सकती हैं, जिससे अनिश्चितता की स्थिति बनी हुई है।

2. आईटी सेक्टर के सामने मंदी के बादल: एक्केंचर के नतीजों ने डराया

भारतीय आईटी कंपनियों के शेयरों को भी लगातार छठे दिन बिकवाली का सामना करना पड़ा। इसकी एक बड़ी वजह ग्लोबल आईटी दिग्गज एक्केंचर (Accenture) के ताजा क्वार्टरली नतीजों से मिले संकेत हैं। एक्केंचर ने अपनी राजस्व वृद्धि के अनुमानों को पीछे छोड़ा है, लेकिन विश्लेषकों का कहना है कि ग्राहकों के ‘डिस्क्रेशनरी खर्च’ (वैकल्पिक IT खर्च) में अभी कोई सुधार नहीं दिख रहा है। यानी, कंपनियां अभी भी केवल जरूरी IT प्रोजेक्ट्स पर ही पैसा खर्च कर रही हैं, नए इनोवेशन वाले प्रोजेक्ट्स पर रोक लगी हुई है।

मैक्क्वेरी जैसी ब्रोकरेज फर्मों ने कहा है कि नतीजे बताते हैं कि “मांग में सुधार अभी अनिश्चित और थोड़ा-थोड़ा ही है।” जेफरीज का मानना है कि एक्केंचर के म्यूट गाइडेंस से भारतीय आईटी कंपनियों के लिए अगले साल तेज ग्रोथ की उम्मीदों पर जोखिम मंडरा रहा है। गोल्डमैन सैक्स ने भी चेतावनी दी है कि अगर इस साल डिस्क्रेशनरी मांग में सुधार नहीं दिखता, तो अगले साल की ग्रोथ संभावनाएं खतरे में पड़ सकती हैं।

इसका नतीजा यह हुआ कि निफ्टी आईटी इंडेक्स आज 1.3% गिरा और साल 2025 में अब तक यह 21% की बड़ी गिरावट दर्ज कर चुका है, जबकि इसी दौरान निफ्टी 50 में 5% की बढ़त है।

इसके अलावा, अमेरिका द्वारा H-1B वीजा के लिए आवेदन शुल्क बढ़ाने और वहाँ के कानून निर्माताओं द्वारा Amazon, Apple जैसी बड़ी कंपनियों के H-1B वीजा के इस्तेमाल पर सख्त नजर रखने की खबरों ने भी निवेशकों की चिंताएं बढ़ा दी हैं। भारतीय आईटी कंपनियों के लिए अमेरिका में काम करने का H-1B वीजा एक महत्वपूर्ण चैनल है।

केजरीवाल रिसर्च एंड इन्वेस्टमेंट सर्विसेज के संस्थान अरुण केजरीवाल के शब्दों में, “बाजार उम्मीद पर चलते हैं, लेकिन कोई भी सुधार अमेरिका के साथ व्यापार वार्ता पर निर्भर करेगा। वीजा के मुद्दों ने भी मनोबल को प्रभावित किया है।”

3. वैश्विक बाजारों में नरमी का असर

भारतीय बाजार अकेले नहीं गिर रहे। पूरी एशियाई क्षेत्र की शेयर बाजारों में आज नरमी देखने को मिली। जापान का निक्केई और हांगकांग का हेंग सेंग इंडेक्स भी नीचे थे। इसकी दो बड़ी वजहें हैं:

  • अमेरिका के मजबूत आर्थिक आंकड़े: अमेरिका में बेरोजगारी दावों में गिरावट और दूसरी तिमाही की GDP वृद्धि के आंकड़ों के संशोधन से पता चला कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था अभी भी काफी मजबूत है। इससे निवेशकों को लगने लगा है कि अमेरिकी फेडरल रिजर्व (Fed) ब्याज दरों में जल्दी और बड़ी कटौती नहीं करेगा। कम ब्याज दरें वैश्विक बाजारों के लिए तरलता बढ़ाती हैं, इसलिए जब कटौती की उम्मीदें कम होती हैं, तो बाजारों में मंदी आ जाती है।

  • ट्रम्प के टैरिफ का वैश्विक डर: ट्रम्प द्वारा सिर्फ दवाओं पर ही नहीं, बल्कि भारी ट्रकों, फर्नीचर आदि पर भी उच्च टैरिफ लगाने की घोषणा ने वैश्विक व्यापार युद्ध के डर को फिर से जगा दिया है। इससे दुनिया भर की कंपनियों के मुनाफे पर असर पड़ने की आशंका है, जिसका नकारात्मक प्रभाव शेयर बाजारों पर पड़ रहा है।

निष्कर्ष: अब आगे क्या?

तो दोस्तों, सारांश यह है कि आज बाजार की गिरावट के पीछे कोई एक कारण नहीं, बल्कि घरेलू और वैश्विक कारणों का एक जहरीला कॉकटेल है। फार्मा और आईटी सेक्टर, जो भारतीय बाजार और अर्थव्यवस्था के दो महत्वपूर्ण स्तंभ हैं, वे दोनों ही अमेरिका से जुड़े अनिश्चितता के दबाव में हैं। साथ ही, वैश्विक स्तर पर ब्याज दरों और व्यापार नीतियों को लेकर चिंता का माहौल है।

ऐसे में, अल्पकाल में बाजार में उतार-चढ़ाव जारी रह सकता है। विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि ऐसे समय में निवेशकों को धैर्य बनाए रखना चाहिए और बिना किसी दबाव के बिकवाली से बचना चाहिए। बाजार चक्रीय हैं, गिरावट के बाद सुधार की संभावना हमेशा बनी रहती है। लेकिन अगले कुछ दिन अमेरिका और भारत के बीच व्यापार वार्ता और वैश्विक आर्थिक आंकड़ों पर नजर रखनी होगी, क्योंकि यही बाजार की दिशा तय करेंगे|

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