Gold में गिरावट, मौका है या चेतावनी?

सोने के दाम में हल्की रुख़ाई, क्या यह मौका है खरीदारी का?

अगर आप भी सोने-चांदी के बाजार पर नजर रखते हैं, तो बृहस्पतिवार को आपने एक दिलचस्प मंदी का ट्रेंड देखा होगा। दरअसल, घरेलू वायदा बाजार में सोने के भाव में थोड़ी सी गिरावट दर्ज की गई। मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (MCX) पर, अक्टूबर महीने में डिलीवरी के लिए सोने के भाव में ₹125 की कमी आई, जिससे कीमत ₹1,12,430 प्रति 10 ग्राम पर पहुंच गई। दिसंबर कॉन्ट्रैक्ट के भाव में भी ₹147 की गिरावट देखने को मिली।

लेकिन यहां एक मजेदार बात यह है कि चांदी ने इस उलटफेर में अपनी चमक बनाए रखी। दिसंबर कॉन्ट्रैक्ट के लिए चांदी के भाव में ₹124 का इजाफा हुआ, जबकि मार्च 2026 के कॉन्ट्रैक्ट में ₹147 की बढ़त दर्ज की गई।

सवाल यह उठता है कि आखिर सोने के भाव में यह मामूली गिरावट क्यों आई? और क्या इसका मतलब यह है कि बाजार में एक बड़ा बदलाव आने वाला है? आइए, समझते हैं पूरी कहानी।

वैश्विक बाजार का असर

भारत में सोने-चांदी की कीमतों पर सीधा असर अंतरराष्ट्रीय बाजार का होता है। बृहस्पतिवार को वैश्विक बाजार में सोना और चांदी दोनों ही एक तरह से ‘सपाट’ चल रहे थे। सोना प्रति औंस लगभग $3,768.50 के आसपास अटका हुआ था। यह ‘इंतजार की फिज़ा’ का नतीजा था।

दरअसल, दुनिया भर के निवेशक और व्यापारी अमेरिका से आने वाले एक बहुत ही अहम आर्थिक आंकड़े का इंतजार कर रहे थे – PCE प्राइस इंडेक्स। यह इंडेक्स अमेरिकी फेडरल रिजर्व (जो कि अमेरिका का केंद्रीय बैंक है) का पसंदीदा मुद्रास्फीति का मापदंड माना जाता है। इस आंकड़े से यह अंदाजा लगता है कि अमेरिका में महंगाई किस दिशा में जा रही है, और इसी के आधार पर फेड ब्याज दरों में बदलाव के अपने अगले कदम तय करता है।

ब्याज दरों और सोने का गहरा रिश्ता

यहां थोड़ा टेक्निकल चीज समझना जरूरी है। अमेरिका में ब्याज दरें बढ़ने का मतलब है अमेरिकी डॉलर का मजबूत होना। जब डॉलर मजबूत होता है, तो सोना जैसी नॉन-इंटरेस्ट बेअरिंग एसेट (ऐसी संपत्ति जिस पर कोई ब्याज नहीं मिलता) में निवेशकों की दिलचस्पी कम होने लगती है। इसके उलट, जब ब्याज दरें कम होती हैं, तो सोना एक आकर्षक निवेश विकल्प बन जाता है।

विश्लेषकों का मानना है कि इस साल अमेरिकी फेड द्वारा दो बार ब्याज दरें कम करने की उम्मीद ने डॉलर की रफ्तार पर लगाम लगा दी है, जिससे सोने को थोड़ी सहारा मिला है और वह पूरी तरह से नहीं गिरा। हालांकि, फेड के अध्यक्ष जेरोम पॉवेल का रवैया अभी भी सतर्कता भरा है। उन्होंने महंगाई और सुस्त पड़ते रोजगार बाजार के बीच संतुलन बनाने की चुनौती को रेखांकित किया है। फेड के अंदर भी एकराय नहीं है – कुछ सदस्य दो बार दरों में कटौती चाहते हैं, तो कुछ की राय अलग है। यह अनिश्चितता ही सोने की कीमतों को एक सीमा में बांधे हुए है।

आशा और आशंका के बीच झूलता बाजार

दूसरी तरफ, कुछ आर्थिक आंकड़ों ने स्थिति को और दिलचस्प बना दिया है। अगस्त में अमेरिका में नए घरों की बिक्री में अप्रत्याशित रूप से तेजी आई, जो साल 2022 की शुरुआत के बाद से सबसे तेज रफ्तार है। इससे अर्थव्यवस्था के मंद पड़ने की आशंका थोड़ी कम हुई है। जब अर्थव्यवस्था मजबूत होती है, तो निवेशक जोखिम भरे निवेश (जैसे शेयर बाजार) की तरफ भागते हैं, और सोने जैसे सुरक्षित संपत्ति (Safe Haven) से थोड़ा दूर होते हैं। इसलिए यह खबर सोने के लिए थोड़ी निराशाजनक रही।

लेकिन सोने की ‘सुरक्षित पनाहगार’ की छवि अभी भी बरकरार है। रिलायंस सिक्योरिटीज के वरिष्ठ रिसर्च विश्लेषक जिगर त्रिवेदी के मुताबिक, रूस-यूक्रेन युद्ध और मध्य पूर्व में जारी संघर्ष जैसी भू-राजनीतिक तनाव की स्थितियां सोने की अपील को बनाए हुए हैं। ऐसे समय में निवेशक अपना पैसा सोने में लगाकर भविष्य की अनिश्चितता से बचाव (Hedge) करते हैं।

आगे क्या होगा? निवेशक किन बातों पर नजर गड़ाए हुए हैं?

अब सभी की नजरें शुक्रवार को जारी होने वाले PCE प्राइस इंडेक्स पर टिकी हैं। अगर यह आंकड़ा महंगाई में कमी का संकेत देता है, तो फेड के ब्याज दरें कम करने की संभावना बढ़ जाएगी, जिससे सोने के भाव में तेजी आ सकती है। वहीं, अगर महंगाई जिद्दी साबित होती है, तो फेड ब्याज दरें लंबे समय तक ऊंची रख सकता है, जिसका असर सोने पर दबाव के रूप में देखने को मिलेगा।

इसके अलावा, निवेशक फेडरल ओपन मार्केट कमेटी (FOMC) के सदस्यों के आगामी भाषणों को भी बहुत गौर से सुनेंगे, ताकि मौद्रिक नीति की दिशा के बारे में कोई संकेत मिल सके।

निष्कर्ष: निवेशक के लिए क्या है सबक?

इस छोटे से उतार-चढ़ाव से हमें क्या सीख मिलती है?

  1. सोना वैश्विक घटनाओं से चलता है: भारत में सोना खरीदते समय सिर्फ देश की स्थिति नहीं, बल्कि अमेरिका की आर्थिक नीतियों और अंतरराष्ट्रीय तनाव पर भी नजर रखनी जरूरी है।

  2. अनिश्चितता है तो अवसर भी है: बाजार के ‘वेट एंड वॉच’ के मूड में छोटी-मोटी गिरावट दीर्घकालिक निवेशकों के लिए खरीदारी का एक अच्छा मौका हो सकती है।

  3. चांदी ने दिखाई अलग राह: सोने के मुकाबले चांदी का प्रदर्शन इस बात का संकेत है कि दोनों धातुओं के अलग-अलग कारक होते हैं। चांदी में औद्योगिक मांग का पहलू भी शामिल है, जो उसे एक अलग डायनामिक देता है।

तो, सोने के भाव में आई यह ₹125 की गिरावट कोई बड़ी चिंता की बात नहीं, बल्कि वैश्विक बाजार की एक सामान्य हलचल है। समझदार निवेशक इन उतार-चढ़ावों में छिपे अवसरों को पहचानते हैं और अपनी रणनीति को इन आर्थिक हवाओं के अनुसार ही adjust करते हैं।

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