Ladakh Crisis: सरकार बनाम आंदोलन

लद्दाख, जिसे हम ‘भूमि के पास’ और शांति की नगरी के नाम से जानते हैं, आज चर्चा में एक दर्दनाक वजह से है। पिछले 24 घंटों में यहाँ जो हिंसक घटनाएँ घटीं, जिनमें चार लोगों की दुखद मौत हो गई, उसने पूरे देश को हिलाकर रख दिया है। यह घटना सिर्फ एक समाचार की सुर्खी नहीं, बल्कि लद्दाख की शांतिपूर्ण छवि पर एक गहरा धब्बा है। आइए, इस पूरी स्थिति को विस्तार से समझते हैं।

क्या हुआ था लद्दाख में?

बुधवार का दिन लद्दाख की राजधानी लेह के लिए एक भयावह सपने जैसा था। राज्यत्व की माँग को लेकर चल रहे आंदोलन ने अचानक एक हिंसक रूप धारण कर लिया। प्रदर्शनकारियों का एक समूह उग्र हो गया। घटनाक्रम इतना तेजी से बदला कि भारतीय जनता पार्टी (BJP) के एक कार्यालय को नुकसान पहुँचाया गया और सीआरपीएफ के एक वाहन में आग लगा दी गई। सबसे डरावनी बात यह रही कि प्रशासन के अनुसार, भीड़ ने उस वाहन के अंदर तैनात सीआरपीएफ के जवानों को जलाने की कोशिश भी की। इस झड़प में 30 पुलिस और सीआरपीएफ के जवान घायल हुए। दूसरी ओर, स्थानीय नेताओं ने सुरक्षा बलों पर जरूरत से ज्यादा बल प्रयोग का आरोप लगाया है।

प्रशासन की प्रतिक्रिया: ‘साजिश’ का आरोप

इस हिंसा के बाद लद्दाख के लेफ्टिनेंट गवर्नर कविंदर गुप्ता ने स्पष्ट और सख्त शब्दों में बात की। उन्होंने इस घटना को एक ‘साजिश’ करार दिया। उनका कहना था कि लोकतंत्र में शांतिपूर्ण विराज करना हर किसी का अधिकार है, लेकिन लद्दाख में पिछले दो दिनों से लोगों को भड़काने की कोशिश की जा रही थी।

एक बहुत ही चौंकाने वाली बात उन्होंने कही। उन्होंने इशारा किया कि इस प्रदर्शन की तुलना बांग्लादेश और नेपाल में हुई हिंसक घटनाओं से की जा रही थी। उनके शब्दों में, “जब ऐसी तुलना की जाती है, तो लगता है कि कहीं न कहीं कोई साजिश है… फिर साफ हो जाता है कि कहीं कोई ‘विदेशी ताकतें’ शामिल हैं।” उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि इस खास दिन को हिंसा के लिए क्यों चुना गया? एलजी गुप्ता ने जोर देकर कहा कि लद्दाख को हिंसा का अड्डा बनने नहीं दिया जाएगा और चाहे कोई भी कितना भी बड़ा क्यों न हो, उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।

हंगर स्ट्राइक और सोनम वांगचुक पर लगे आरोप

इस पूरे प्रकरण में एक प्रमुख नाम सामने आया है – सोनम वांगचुक। वांगचुक, जो एक जाने-माने समाजसेवी और शिक्षाविद् हैं, लद्दाख के लिए संवैधानिक सुरक्षा की माँग को लेकर भूख हड़ताल पर बैठे थे। केंद्रीय गृह मंत्रालय के एक बयान के अनुसार, वांगचुक पर आरोप लगाया गया है कि उन्होंने नेपाल में ‘जनरेशन जेड’ के प्रदर्शनों और ‘अरब स्प्रिंग’ जैसी उत्तेजक बातों का जिक्र करके लोगों को गुमराह किया और हिंसा को बढ़ावा दिया। प्रशासन का कहना है कि कई नेताओं के मनाने के बावजूद उन्होंने अपनी भूख हड़ताल जारी रखी।

राजनीतिक दोषारोपण का दौर

जैसा कि ऐसी हर घटना के बाद होता है, राजनीतिक दल एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने में जुट गए हैं। भाजपा ने कांग्रेस पार्षद फुंटसोग स्टैंजिन त्सेपाग पर हिंसा भड़काने का आरोप लगाया है और बताया है कि उनके खिलाफ मामला दर्ज किया गया है। हालाँकि, दूसरी ओर, सोनम वांगचुक ने इस आरोप को खारिज करते हुए कहा है कि कांग्रेस इतने सारे युवाओं को प्रदर्शन के लिए जुटा भी नहीं सकती। इस बीच, लद्दाख पुलिस ने बड़ी कार्रवाई करते हुए हिंसा में शामिल 50 लोगों को गिरफ्तार किया है, लेकिन अभी तक स्पष्ट नहीं है कि कांग्रेस पार्षद भी इन गिरफ्तारियों में शामिल हैं या नहीं।

असली मुद्दा क्या है?

इस हिंसा के बीच एक बहुत बड़ा सवाल यह है कि आखिर लद्दाख के लोग असल में चाहते क्या हैं? साल 2019 में जब जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा हटाकर लद्दाख को एक अलग केंद्रशासित प्रदेश बनाया गया था, तब स्थानीय लोगों ने इसका स्वागत किया था। लेकिन पिछले तीन सालों में, सीधे केंद्र शासन के तहत, यहाँ असंतोष बढ़ता गया है।

लद्दाख के लोगों की मुख्य माँगें हैं:

  1. पूर्ण राज्य का दर्जा: लद्दाख को अभी केंद्रशासित प्रदेश का दर्जा प्राप्त है, लेकिन लोग इसे एक पूर्ण राज्य के रूप में देखना चाहते हैं।

  2. संवैधानिक सुरक्षा: लद्दाख के लोग चाहते हैं कि उनकी जमीन, संस्कृति, भाषा और प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा के लिए संवैधानिक प्रावधान किए जाएँ, जैसा कि पहले जम्मू-कश्मीर के अनुच्छेद 370 के तहत हुआ करता था।

  3. रोजगार के अवसर: स्थानीय युवाओं को रोजगार के पर्याप्त अवसर मिलें, इसकी गारंटी चाहते हैं।

  4. राजनीतिक खालीपन: लेफ्टिनेंट गवर्नर के शासन में लोगों को एक तरह का ‘राजनीतिक खालीपन’ महसूस हो रहा है। उनका मानना है कि स्थानीय मुद्दों पर स्थानीय लोगों का नियंत्रण नहीं है।

निष्कर्ष: शांति की राह क्या है?

लद्दाख की धरती सदियों से अध्यात्म और सहअस्तित्व की प्रतीक रही है। यहाँ की शांति को बनाए रखना सबकी साझा जिम्मेदारी है। हिंसा किसी भी समस्या का हल नहीं है। प्रशासन का यह कर्तव्य है कि वह हिंसा फैलाने वालों के खिलाफ कठोर कार्रवाई करे, लेकिन साथ ही, लद्दाख के लोगों की वाजिब माँगों को गंभीरता से सुने और उन पर विचार करे।

एक तरफ जहाँ सुरक्षा बलों के जवानों की सुरक्षा और उन पर हुए हमले गंभीर चिंता का विषय हैं, वहीं दूसरी तरफ यह भी सुनिश्चित करना होगा कि शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे नागरिकों के साथ न्याय हो। आशा की जानी चाहिए कि सरकार और लद्दाख के प्रतिनिधियों के बीच एक सार्थक संवाद शुरू होगा, ताकि इस सुंदर और रणनीतically महत्वपूर्ण क्षेत्र की शांति और विकास सुनिश्चित किया जा सके। लद्दाख के लोगों का दर्द समझना और उनकी आवाज सुनना ही इस संकट का स्थायी समाधान हो सकता है।

धन्यवाद।

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